Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 10

भाग,10
   वीरेंद्र रीतिका को लेकर चले गए थे।मैं कुछ देर  वहाँ खड़ी रही फिर उपर कमरे में आ गई। मेरी सोच मुझ पर हावी हो रही थी।  पता नहीं क्यों मिन्नी का बना स्वेटर वीरेंद्र को पहने देख, फिर वीरेंद्र के लाए सामान के लिए  मिन्नी का झूठ बोलना कि ये तो मैने मंगवाया है।  रीतिका का वीरेंद्र के इतने करीब होना। 
तभी दरवाजा खुला और मिन्नी अंदर आ गई। रीतिका रीतिका
मिन्नी वो तो वीरेंद्र जी के साथ ग ई है।
कब ? तुमने क्यों जानें दिया नीरजा।
अरे मिन्नी उन दोनो ने तो मुझे अनदेखा ही कर दिया था।
मैने तुम्हारे वास्ते से रोकना भी चाहा।पर वीरेंद्र उसे लेकर चले गए।
फिर क्या  हुआ मिन्नी वीरेंद्र तुम्हारे  जानकार हैं, कोई अजनबी थोड़े ही हैं। 
नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है।
तभी चौकीदार के साथ एक बड़ा सा पैकिट लिए रीतिका उपर आ गई।चौकीदार ने मिन्नी से कहा, वीरेंद्र बोल रहें है सात बज चुके हैं मैं अंदर नहीं आऊँगा, एक बार आ प ही बाहर चली जाओ। कोई काम बता रहे ह़ै।
मिन्नी नीचे चली गई थी।
रीतिका मुझे सामान दिखा रही थी जो उसे उस  के वीरेंद्र अंकल ने दिलवाया था। एक छोटी डिब्बी के पैक में चार गुलाब जामुन के पीस थे जिन्हें रीतिका ने खोल कर ये कह कर रख दिया था कि ये मुझे अच्छे नहीं लगते।
तो फिर आप ने क्यों लिया बच्चे।
मासी ये सब अंकल ने ही दिलवाया है।
मुझे मिन्नी की कही बात याद आ गई ,  मुझे गुलाब जामुन बचपन से ही बहुत पंसद है।
रीतिका एक  गाड़ी भी लेकर आई थी,जो बैटरी से चलती थी।
वो उसे कमरे में दौड़ा रही थी। 
तभी मिन्नी उपर आई थी।उसके हाथ में कुछ कागच थे,उसनें अपनी अलमारी खोली और वो कागच उस ने जैसे बहुत संभाल कर  रखे थे कहीं। मुझे ऐसा इसलिए लगा क्योंकि वो आते ही अपना पूरा सामान बैड पर रख देती थी।कभी पर्स भी उसने अलमारी में नहीं रखा था।
नीरजा चाय पियोगी क्या।
मैं बनाती हूँ।
अरे तुम बैठो मैं बना देती हूँ।
मंमा मैं भी चाय।
नहीं तुम कुछ नहीं खाओगी, तुम ने बहुत खा लिया।
चाय पीते वक्त मिन्नी थोड़ी गभींर थी।
क्या हुआ मिन्नी, कुछ चुप चुप हो।
नहीं नीरजा ऐसा तो कुछ नहीं है, पर जाने मुझे क्यों ऐसा लगता है इस शहर से मेरा दाना पानी उठ गया है।
क्यों क्या  हुआ, कोई नयी जॉब  की बात है क्या।
नहीं कुछ है भी ओर नहीं भी,पर पता नही मुझे क्यों ऎसा लग रहा है।
खैर छोड़ो वो अपनी ही बात को जैसे खत्म करना चाह रही थी।
रीतिका सो ग ई थी ,मिन्नी भी अपना कोई काम कर रही थी।
मै भी जल्दी जगी होने के कारण पता नहीं कब सो ग ई थी।  सुबह उठी तो देखा माँ बेटी दोनों उठी हुई थी। रीतिका एक बहुत ही अच्छी व  किसी को तंग न करने वाली बच्ची थी। मैं उसके साथ चार दिन रही मुझे ये बहुत अच्छा लगा कि वो रोजाना अपना पढाई  का काम भी करती थी।हालांकि ये उस की पढ़ने की उम्र नहीं थी, फिर भी उसने बातों बातों में बताया था कि उसे रोज स्टार मिलता है।
मै दीवाली की चार छुट्टियों के कारण घर चली गई थी। मिन्नी ने मुझे दीवाली पर एक बहुत प्यारा कुर्ता दिया था।मैंने लेने में आनाकानी की तो उसनें कहा था तुम मेरी बेटी की मासी हो तो फिर मेरी क्या हुई।
रिश्तों से भागने वाली लड़की के साथ मेरा बहुत प्यारा रिश्ता बन गया था।मैं भी स्टेनो दीदी के साथ जाकर रीतिका के लिए एक स्वेटर लायी थी।मिन्नी के कुछ बोलने से पहले ही रीतिका ने वो ले लिया था।
दीवाली बहुत अच्छी तरहं से मनाते है हम लोग। घर में बहुत अच्छी  दीवाली मनी थी,पर कहीं एक कमी सी थी किसी कोने में, शायद मैं मिन्नी और उसकी बेटी को मिस कर रही थी।
क्रमशः

औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिताविम्मी।
भिवानी, हरियाणा

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1 Comments

Aliya khan

07-Sep-2021 12:03 PM

🥰🥰🥰 nice

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